अपने जन्मदिन पर कुछ शब्द
चाहे सुखभरी हों या दुखभरी , बचपन की यादें कभी हमारा पीछा नहीं छोडती। खासकर जब भी कोई विशेष मौका आता है , पुरानी यादें अवश्य ताजी हो जाती हैं। जिस संयुक्त परिवार में मेरा जन्म हुआ, उसमें उस समय दादा जी , दादी जी के अलावे उनके पांच बेटों के साथ साथ दो बेटों का परिवार भी था, दो चाचाजी उस समय अविवाहित ही थे। पर मेरे बडे होने तक दो और के विवाह हो गए थे और कुछ नौकरों चाकरों को लेकर 35 लोगों का परिवार था। पांच बेटे में इकलौती प्यारी बिटिया से दूर होना दादा जी और दादी जी के लिए बहुत कठिन था , सो उनका विवाह भी गांव में ही किया गया था। पर्व, त्यौहार या जन्मदिन वगैरह किसी कार्यक्रम में अपने पांच बच्चों सहित बुआ और फूफा जी की उपस्थिति हमारे यहां अनिवार्य थी , जिसके कारण बिना किसी को निमंत्रित किए हमलोगों की संख्या 45 तक पहुंच जाती थी।
हमारे घर में हिन्दी पत्रक से ही बच्चे-बडे सबका जन्मदिन मनाया जाता था। उस समय केक काटने की तो कोई प्रथा ही नहीं थी, नए कपडे भी नहीं बनते थे। सिर्फ खीर पूडी या अन्य कोई पकवान बनता , भगवान जी को भोग लगाया जाता और सारे लोग मिलजुलकर खुशी खुशी खाते पीते। हर महीने में दो तीन लोगों के जन्मदिन तो निकलने ही थे। कम से कम 3-4 किलो चावल के खीर के लिए 15 किलो से अधिक ही दूध की व्यवस्था होती , पीत्तल की एक खास बडी सी कडाही को निकाला जाता , खीर बनते ही दादी जी 40 से अधिक कटोरे में उसे ठंडा होने को रखती , फिर उसमें से एक कटोरे के खीर का बच्चे द्वारा भगवान जी को भोग लगाया जाता। कई अन्य व्यंजन बनते , उसके बाद खाना पीना शुरू किया जाता।
पर 1963 के दिसंबर में एक बडी समस्या उपस्थित हो गयी थी। 27 नवम्बर 1954 को पौष शुक्ल पक्ष की द्वितीया को जन्म लेनेवाले छोटे चाचा जी का जन्मदिन मनाने के लिए तिथि निश्चित करने की समस्या खडी हो गयी थी। ऐसा इसलिए क्यूंकि उस वर्ष के पंचांग में 15 दिनों का मार्गशीर्ष और पंद्रह दिनों का पौष ही था। आखिरकार 18 दिसम्बर को पौष महीने की शुक्ल पक्ष की तिथि को देखते हुए उनका जन्मदिन मनाने का निश्चय किया गया। रात 11 बजे तक घर में उत्सवी वातावरण में व्यस्त रही मम्मी की 11 बजे के बाद तबियत खराब हो गयी और वे 19 दिसंबर की सुबह मेरे जन्म के बाद ही सामान्य हो सकी। इस तरह हिन्दी पंचांग के अनुसार मेरा जन्म ऐसे पौष महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि में हुआ है , जो एक ही पक्ष का यानि 15 दिनों का ही था। सौरवर्ष के साथ चंद्र वर्ष का तालमेल करने के क्रम में बहुत वर्षों बाद ही पंचांग में इस तरह का समायोजन किया जाता है।
यूं तो परिवार में हर महीने कई जन्मदिन मनाए जाते थे , पर ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि एक जन्मदिन के दूसरे ही दिन दूसरा जन्मदिन हो , जैसा कि दूसरे वर्ष मेरे पहले जन्मदिन में आया,चाचा जी के जन्मदिन के बाद दूसरे ही दिन मेरा। लगातार एक जैसा कार्यक्रम तो निराश करता है , पहले वर्ष तो सबने विधि अनुसार ही किया , पर दूसरे वर्ष से मेरे जन्मदिन में भगवान जी को मिठाई का भोग लगने लगा , मुझे चाचाजी के जन्मदिन का बचा खीर चखाया जाता रहा और अन्य लोगों के लिए अलग पकवान की व्यवस्था की जाने लगी। जब मैं बडी हुई तो मैने अपना जन्मदिन अन्य लोगों से भिन्न तरीके से मनता पाया , तब मुझे सारी बाते बतायी गयी । मुझे मीठा अधिक पसंद भी नहीं , इसलिए कभी भी खीर बनाने की जिद नहीं की और अपेक्षाकृत कम मीठे पुए से ही खुश होती रही।
पर विवाह के बाद आजतक मेरा जन्मदिन अंग्रेजी तिथि के अनुसार ही मनाया जाता रहा। वर्ष 2009 का मेरा यह जन्मदिन इसलिए बहुत ही खास हो गया है , क्यूंकि जहां आज एक ओर दिसम्बर की 19 तारीख है , वहीं दूसरी ओर पौष महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया भी , यानि इस जन्मदिन मे सूर्य के साथ साथ चंद्रमा की स्थिति भी उसी जगह है , जहां मेरे जनम के समय थी। इसके अलावे इस जन्मदिन पर मेरे खुश रहने का एक और भी वजह है कि बहुत दिनों बाद मेरे यहां जन्मदिन पर पापा जी की उपस्थिति का संयोग भी इसी बार बना है। इसलिए बचपन की यादें और ताजी हो गयी हैं। मेरे जन्मदिन में बनाए जानेवाले हमारे क्षेत्र के परंपरागत व्यंजनों में से दो का मजा आप भी लें .....
1. पुआ .. एक कप सुगंधित महीन चावल को आधा भीगने के बाद छानकर एक कप खौलते दूध मे डालकर व खौलाकर आधे घंटे छोड दें। उसके बाद उसे पीसकर उसमें स्वादानुसार शक्कर , कटी हुई गरी , किशमिश , इलायची वगैरह डालकर बिल्कुल गाढे घोल को ही रिफाइंड में तलें , स्वादिष्ट चावल के पुए तैयार मिलेंगे। दूध और शक्कर कुछ कम ही डालें , नहीं तो घोल रिफाइंड में ही रह जाएगा।
2. धुसका .. दो कप चावल और एक कप चने के दाल को अच्छी तरह भीगने दें , फिर उसे पीसते वक्त उसमें थोडी प्याज , हरी मिर्च और अदरक डालें , पुए की अपेक्षा थोडे ढीले घोल में नमक , धनिया तथा जीरा का पाउडर डालकर उसे रिफाइंड में तले , यह नमकीन पुआ हमारे यहां 'धुसका' कहा जाता है , जिसे देशी चने के गरमागरम छोले के साथ खाएं !
दो तीन दिनों से मुझे निरंतर जन्मदिन की बधाई और शुभकामनाएं मिल रही हैं, सबों को बहुत बहुत धन्यवाद। उम्मीद रखती हूं , आप सबो का स्नेह इसी प्रकार बना रहेगा !